सोमनाथ महादेव मंदिर: प्रथम ज्योतिर्लिंग का इतिहास और महत्व | Somnath Mahadev Mandir Gujarat

परिचय

सोमनाथ महादेव मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र, वेरावल (प्रभावती-पाटन) में स्थित है। इसे “प्रभास क्षेत्र” भी कहा जाता है। यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम माना जाता है।
सोमनाथ न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है।


सोमनाथ मंदिर का महत्व

  • सोमनाथ मंदिर को “प्रथम ज्योतिर्लिंग” कहा जाता है।
  • मान्यता है कि स्वयं चंद्रदेव ने भगवान शिव की आराधना कर यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी।
  • “सोम” का अर्थ है चंद्र और “नाथ” का अर्थ है ईश्वर, अर्थात् “चंद्र के ईश्वर”

इतिहास और धरोहर

सोमनाथ मंदिर का इतिहास संघर्ष और पुनर्निर्माण से भरा हुआ है।

  • इसे बार-बार आक्रमणकारियों ने तोड़ा, लेकिन हर बार भक्तों ने आस्था और भक्ति से इसका पुनर्निर्माण किया।
  • महमूद गज़नवी से लेकर औरंगज़ेब तक कई बार यह मंदिर ध्वस्त हुआ, लेकिन हर बार यह पहले से भी अधिक भव्य स्वरूप में खड़ा हुआ।
  • वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की उपस्थिति में 1951 में हुआ।

मंदिर की विशेष वास्तुकला

  • मंदिर चालुक्य शैली (Kailash Maha Meru Prasad) में बना है।
  • मंदिर का शिखर 150 फीट ऊँचा है, जिस पर 10 टन वजनी कलश और 27 फीट लंबा ध्वज लहराता है।
  • मंदिर का गर्भगृह अत्यंत शांत और आध्यात्मिक वातावरण से भरा हुआ है।

सोमनाथ का चमत्कार

मंदिर के दक्षिण में समुद्र तट है। मंदिर की दीवार पर एक शिलालेख अंकित है, जिसमें लिखा है कि सोमनाथ से दक्षिण की ओर सीधी रेखा में कोई भू-भाग नहीं है, केवल समुद्र है। इसे “बानस्तंभ” कहा जाता है। यह स्थान श्रद्धालुओं को ब्रह्मांड की अनंतता का अनुभव कराता है।


धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

  • यहाँ प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
  • शिवरात्रि और श्रावण मास में यहाँ विशेष मेले और उत्सव आयोजित किए जाते हैं।
  • कहा जाता है कि सोमनाथ के दर्शन से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं।

मंदिर

सोमनाथ महादेव मंदिर केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था, श्रद्धा और साहस का प्रतीक है। यह स्थान हमें सिखाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, आस्था और भक्ति को कोई नष्ट नहीं कर सकता।
सोमनाथ आज भी अपनी भव्यता और दिव्यता से भक्तों को आकर्षित करता है और भारत की आध्यात्मिक धरोहर का उज्ज्वल प्रतीक बना हुआ है।